(राग गुनकली-ताल त्रिताल)
निज सुखकी परवाह न करके, करना सुखी प्रजाको नित्य।
फैलाना आचरण स्वयं कर, सदाचार, सेवा, तप, सत्य॥
ईश्वरमें रति बढ़े सतत, करना-करवाना ऐसे कर्म।
न्याय-दयायुत सदा बरतना-यही श्रेष्ठ राजाका धर्म॥
(राग गुनकली-ताल त्रिताल)
निज सुखकी परवाह न करके, करना सुखी प्रजाको नित्य।
फैलाना आचरण स्वयं कर, सदाचार, सेवा, तप, सत्य॥
ईश्वरमें रति बढ़े सतत, करना-करवाना ऐसे कर्म।
न्याय-दयायुत सदा बरतना-यही श्रेष्ठ राजाका धर्म॥