निति और मर्यादा, नेम तोड़ने का पाप है / प.रघुनाथ
वार्ता - चित्र गन्धर्व ने कहा कि तुम सभी पांडव होशियार हो, लेकिन मैं अफसोस के साथ कहता हूँ जिसने तुम्हारी स्त्री को अपमानित किया तु उसी की हिमायत को दौड़ा, इसी कारण तो मैंने दुर्योधन को पकड़ा है और क्या कहता है।
नीति और मर्यादा, नैम तोडऩे का पाप है।
बेईमान बदकार पापी, छोडऩे का पाप है।। टेक।।
छलिया है जुवारी थारी, जीत लई सरदारी।
द्रोपदी सती की इसने, भरी सभा में इज्जत तारी।।
कपटी मनुष्य के संग यारी, जोडऩे का पाप है।। 1।।
दयावान सन्तोषी दानी, होणा चहिये राजा।
भूखा प्यासा दो रोटी तो, चाहे जो कोई खाजा।।
अतिथि जो घर पै आजा, मुंह मोडऩे का पाप है।। 2।।
दुनिया के मां पता चले है, अच्छे बुरे कर्म का।
इस दुर्योधन के मन में, ना रहा खोज शर्म का।।
इज्जत ढका हुआ ढोल भर्म का, फोडऩे का पाप है।। 3।।
राम राज के से दुनिया में, आज सब के रूल हों।
रघुनाथ काव्य रस कविताई के, खिले बोल में फूल हो।।
जिस मार्ग में शूल हों, वहां दोडऩे का पाप है।। 4।।