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नित्य, अनन्त, अचिन्त्य, अनिर्वचनीय / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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नित्य, अनन्त, अचिन्त्य, अनिर्वचनीय, प्रेम-विजान-निधान।
विश्वातीत-विश्वमय, निर्गुण-सगुण, रस-सुधा-सिन्धु महान॥
अकल-सकल, सुर-मुनि-‌ऋषि-सेवित-चरण-सरोरुह श्रीभगवान।
परम शरण्य, परम गुरु, करते जन प्रपन्नका अभय-विधान॥