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नित्य प्रातःकाल उगता सूर्य जब हँसता हुआ / बाबा बैद्यनाथ झा

नित्य प्रातःकाल उगता सूर्य जब हँसता हुआ
जोश जज़्वा ले बढ़ो तुम बात यह कहता हुआ

साँझ में मैं डूब जाता फ़र्क़ क्या इससे मुझे
सर्वदा चलता रहूँगा राह पर बढ़ता हुआ

रोशनी को बाँटते ही थक गया होता अगर
तब ज़रा आराम करने दीखता ढलता हुआ

ज़िन्दगी में दुख मिले या आपदा कोई कभी
मंज़िलों की ओर बढ़ता दर्द वह सहता हुआ

दान आवश्यक जहाँ पर तुम वहाँ चूको नहीं
भूख से कोई तड़पता हो अगर मरता हुआ

श्रेष्ठ रचनाएँ करूँ मैं मात्र 'बाबा' लक्ष्य है
तुष्ट होता लोग देखें मंच पर पढ़ता हुआ