भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नित्य साँझ के ढले / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नित्य साँझ के ढले।
दीप राह में जले॥

देश के विकास का
स्वप्न आँख में पले॥

मुक्ति द्वार हो खड़ी
यों न ज़िन्दगी छले॥

दूर हो गयी निशा
कर्म रात के फले॥

है न रौशनी कहीं
अंधकार सीख ले॥

जिंदगी न ले लगा
आज मौत के गले॥

पन्थ की अधीरता
साथ साथ ही चले॥