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नित्य साँझ के ढले / रंजना वर्मा
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नित्य साँझ के ढले।
दीप राह में जले॥
देश के विकास का
स्वप्न आँख में पले॥
मुक्ति द्वार हो खड़ी
यों न ज़िन्दगी छले॥
दूर हो गयी निशा
कर्म रात के फले॥
है न रौशनी कहीं
अंधकार सीख ले॥
जिंदगी न ले लगा
आज मौत के गले॥
पन्थ की अधीरता
साथ साथ ही चले॥