भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नित-नित देखीले सपनवाँ हो रघुनाथ कुँवर के / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नित-नित देखीले सपनवाँ हो रघुनाथ कुँवर के।
बन के गमन कीन्हीं हमनी के तजी दिन्हीं,
ना जाने कवनी करनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
चउदह बरस गइलें अबहुँना लालन अइलें का सो देखाईं सगुनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
जब सुधि आबे राम जी तोहरी सुरतिया व्याकुल होला परनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
जब-जब याद पड़े नैना से नीर झरे जइसे झरेला सवनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
कहत महेन्द्र कागा उचरऽना अँगनवाँ कब अइहें रामजी भवनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।