भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निदा नवाज़ की कविताएँ / अक्षर-अक्षर रक्त-भरा / रामनाथ शास्त्री

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अच्छी किताब को किसी ‘भूमिका’ की बैसखी की अपेक्षा नहीं होती.लेकिन अच्छी किताब को भी सुधी, सहृदय पाठक की अपेक्षा ज़रुर होती है।

पिछले 9-10 बरस से सहमी हुई कश्मीर की सर्वगोदम वादी में, उसकी हज़ारों बरस पुरानी सांस्कृतिक परम्पराएं अपने घावों पर मरहम लगाने वाले ममता-भरे हाथों की प्रतीक्षा में हैं। ऐसे लगने लगा है कि वादी की यह मौन प्रतीक्षा अब समाप्त होने पर आई है।

क्या यह सुखद आश्चर्य नहीं है कि वहां के इस काले दौर में भी साहित्य और संस्कृति के दीप अंधेरों से पराजित नहीं।

कश्मीर के युवा कवि निदा नवाज़ का यह कविता-संग्रह इसी तरह का एक दीप है। इस संग्रह में निदा नवाज़ की लगभग 13-14 बरस की साधना संकलित है। निदा नवाज़ की इस साधना की विशेष बात यह है कि उस ने वादी में दहशत तथा वहशत के दौर में भी, वादी में रहकर ही अपनी इस काव्य-साधना को परवान चढ़ाया है। निदा नवाज़ अपनी इस साधना में वहां अकेले होकर भी अकेले नहीं. “कुछ कमी नहीं है /सब कुछ है अब / पास मेरे.../ अधखिले फूल / भावनाओं की नदियाँ / आंसुओं की वर्षा....”

निदा नवाज़ अपनी ही आस्था और विशवास से प्रेरित होकर इस समय कश्मीर घाटी में अकेला ही हिंदी कविता की मशाल लेकर अँधेरे रस्ते में निकल पड़ा है। निदा नवाज़ का दर्द और उसकी आस्था के कुछ अंकुरों के नमूने देखिये. “आशा,पुष्प और सत्य की क्यारी/हठधर्मी से रौन्धी जाए/दुःख होता है/..........सिरहाने रखे सपने/सांप बन जाते हैं, /जब बारूदी धुएं में/पूर्णिमा/आमावस बन जाती है.......आओ आज इस धरती पर/शान्ति की एक चादर बिछाएं /और यह प्रतिष्ठित करें/कि सारी मानवता की सफलता/केवल शान्ति में है.”

निदा नवाज़ मैं तुम्हारे लिए यही प्रार्थना करता हूँ ‘शुभास्ते सन्तु’—तुम्हारे इस सफ़र की रहें बाधा-रहित हों.

(पदमश्री) प्रो.रामनाथ शास्त्री
34, कर्ण नगर प्रो.रामनाथ शास्त्री
(जम्मू)