भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निभाना ही कठिन है / गोपालदास "नीरज"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसि!
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।

है बहुत आसान ठुकराना किसी को,
है न मुश्किल भूल भी जाना किसी को,
प्राण-दीपक बीच साँसों को हवा में
याद की बाती जलाना ही कठिन है

प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसि!
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।

स्वप्न बन क्षण भर किसी स्वप्निल नयन के,
ध्यान-मंदिर में किसी मीरा गगन के
देवता बनना नहीं मुश्किल, मगर सब-
भार पूजा का उठाना ही कठिन है।

प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसि!
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।

चीख-चिल्लाते सुनाते विश्व भर को,
पार कर लेते सभी बीहड़ डगर को,
विष-बुझे पर पंथ के कटु कंटकों की
हर चुभन पर मुस्कुराना ही कठिन है।

प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसि!
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।

छोड़ नैया वायु-धारा के सहारे,
है सभी ही सहज लग जाते किनारे,
धार के विपरीत लेकिन नाव खेकर
हर लहर को तट बनाना ही कठिन है।

प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसि!
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।

दूसरों के मग सुगम का अनुसरण कर
है बहुत आसान बढ़ना ध्येय पथ पर
पाँव के नीचे मगर मंजिल बसाकर
विश्व को पीछे चलाना ही कठिन है।

प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसि!
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।

वक्त के संग-संग बदल निज कंठ-लय-स्वर
क्या कठिन गाना सुनाना गीत नश्वर
पर विरोधों के भयानक शोर-गुल में
एक स्वर से गीत गाना ही कठिन है।

प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसि!
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।