निम्न-मध्यवर्गीय युवक / कुमार मुकुल

भरसक बचता है आईने से

सौंदर्यबोध उसका चुभ जाए किसको कब

और ओढ़ लेनी पड़े निजी बेहयायी

किस पल !


सोचता- मुड़ा ले सर

डरता है

लोग जोड़ेंगे बाबा की बरसी से

टूअर-यतीम जैसे शब्द

प्रिय हो रहे

कोई मानेगा

आँखों में झाँकेगा नहीं

चेहरे से लगेगा

ख़ुशकिस्मत है

तन्दुरुस्त है

सो है

सर्कस के कलाकार भी होते हैं दुरुस्त


पर इनकार कर रहा

तमाशे से ही

बाहर (सर्कस नहीं है दुनिया)

कैसे-कैसे जानवर हों ?

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