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निरपेख / कन्हैया लाल सेठिया

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जागग्या
सूरज री उगाळी सागै
सूता गेला
करै बगता बटाऊ
आपसरी में
रामरमीं
उड़ग्या छोड’र
आळा
भख सारू पंखेरू
सुणीजै
निनाण करता
कमतरियां री बतळावण
उतरग्यो सावण
 कोणी बावडयो मेह
आं’गी वधतै धान नै
तिस
पण इण सगळी
हलगल स्यूं निरपेख
ऊबो है
 खेत रो अड़वो
कोनी जळै रै
भूख री जाळा
बी भंऊं
कीं हुवो !