भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निरर्थक / आन्ना कमिएन्स्का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: आन्ना कमिएन्स्का  » निरर्थक

 
बचपन से ही यह असबाब लिए फिर रही हूँ मैं :
काले खोल में पिताजी का वायोलिन,
लकड़ी की एक प्लेट जिस पर यह शब्द उकेरे गए हैं —
दोस्तों के साथ रोटी तोडऩा सबसे अच्छा होता है ।
एक संकरी सड़क
जिस पर एक गुज़रती गाड़ी और घोड़े की परछाइयाँ हैं
फफूँद लगी एक दीवार,
बच्चे का फ़ोल्डिंग पलंग,
कबूतरों के चित्र वाला एक गुलदस्ता,
चीज़ें
जो जीवन से अधिक पाएदार,
भुस भरी हुई एक चिडिय़ा,
जर्जर पड़ चुकी अलमारी के ऊपर
उफ़ ! और सीढ़िय़ों और दरवाज़ों का
यह विशाल पिरामिड ।
आसान नहीं इस सब को
लादे लिए चलना आख़िर तलक ।
मैं एक भी चीज़ से छुटकारा नहीं पाऊँगी ।
जब तक कि मेरी बुद्धिमान माँ
कहीं नहीं से कहीं नहीं को आती है
और मुझसे कहती है
छोड़ दो, प्यारी बच्ची,
इस सब का कोई मतलब नहीं है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक कुमार पाण्डे