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निरसी ज़िन्दगी / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'
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उत्तेड़ा उपेडों की रै जिन्दगी
खैरी दुखरी की रै जिन्दगी
मिट्ठी ह्वैली त् हो कैकी
मेरी त् अब तक कड़ी रै जिन्दगी।
बीज मिन भी बूति छा बिजुण्डका
पर मेरी दां बरखा नि ह्वै
गिल्ली ह्वैली त् हो कैकी
मेरी त् अबतक सूकी रै जिन्दगी।
पौध मिन भी रोपि छै फुल्लूं की
माळा सतरंगी गठ्यांणू कू
रंगीली ह्वैली त् हो कैकी
मेरी त् बेरंगी रै जिन्दगी।
डाळा मिन भी लगैनि कतनै
बनि बन्या रस चखणू कू
रसीली ह्वैली त् हो कैकी
मेरी त् बेरसी रै जिन्दगी।
धाण मेहनत खूब कै मिन भी
अगास का गैंणा देखी की
उब्ब चड़ि ह्वैली त् हो कैकी
मेरी त् गोळ पर बीती जिन्दगी।