निराले झूठ चलते सत्य की परवाह में सौ-सौ / रुचि चतुर्वेदी
ये कैसा है समय विश्वास पर विश्वास ना होता,
जहाँ देखो पड़े हैं जाल भ्रम के राह में सौ सौ।
पड़ा है सत्य खतरे में किसे चिंता चिरातन की,
निराले झूठ चलते सत्य की परवाह में सौ सौ॥
दिखावे का दिखावा है, छलावों पर छलावा है,
नये उपमान पाहुन पर चढ़ा झूठा चढ़ावा है॥
अभी भी वक्त मानो सत्य के परिमित सुझावों को,
लिखो विश्वास का लेखा ये सृष्टि का लिखावा है॥
कलावा थाम लो मन के सनातन भाव को बाँधे,
ये असमंजस मिटे अस्तित्व की उस चाह में सौ सौ॥
पड़ा है सत्य खतरे में किसे चिंता चिरातन की,
निराले झूठ चलते सत्य की परवाह में सौ सौ॥
अनीती ने कहा रोकर मुझे ये नीति ना भायी,
कुपित हो द्वेष बोला प्रीत क्यों इस राह में आयी।
हँसी इर्ष्या, मुझे संतोष यह संसार मेरा है,
अहं ने मुस्कुराकर भाव की नवगितिका गायी॥
खंगाले भाव के सागर हृदय के प्रेम को पाने,
गये गहरे हैं कितने सत्य की इस थाह में सौ सौ॥
पड़ा है सत्य खतरे में किसे चिंता चिरातन की,
निराले झूठ चलते सत्य की परवाह में सौ सौ॥