भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निराशा / बेढब बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


विश्व सूना आज भगवन
हो गयी दुनिया नहीं मालूम,
क्यों नाराज भगवन
पास हूँ एम.ए. एल एल. बी.
और उस पर पास बी. टी.
नौकरी मिलती नहीं फिर भी
कहीं पर आज भगवन
कर्ज ले कपडे मँगाए
सूट फिर उनके सिलाए
माँगता दरजी सिलाई
और दाम बजाज भगवन
कट गया सारा वकेशन
भेजने में अप्लिकेशन
बस इसी में कर रहा था,
दिवस रात रियाज भगवन
अरजियों की कापियाँ हैं
डिगरियों की गठरियाँ हैं.
पर नहीं घर में कहीं पर
सेर भर भी नाज भगवन .
प्रेम पथ में लोग चलते
मोटरों में हैं मचलते
और सोने को यहाँ
मिलता न एक 'गराज' भगवन
विश्व सूना आज भगवन