भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निराश न होना / सुधा गुप्ता
Kavita Kosh से
मेरे पागल प्यार ! निराश न होना
माना तेरा पंथ कठिन है
नहीं झलकती आश-किरण है
बढ़ता चल तू अपने पथ पर
देख, कहीं साहस मत खोना ।
पागल प्यार ! निराश न होना
भेंटे आकर मुझे निराशा
अश्रु सुनावे अपनी गाथा
हँसता-हँसता बढ़ चल पथ पर
देख , कहीं न बैठकर रोना !
पागल कभी निराश न होना !
पागल प्यार ! निराश न होना
शायद प्राण कभी आ जाएँ
तेरा करुण रुदन सुन पाएँ
जगता रह तू ओ निःसम्ब।ल !
देख , कहीं थककर मत सोना
मेरे प्यार ! निराश न होना