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निर्जन, उजड़े रेतीले सागर तट पर / इवान बूनिन
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निर्जन, उजड़े
रेतीले सागर तट पर
कर्कश गरज रहे नीले समुद्र के पास
खंडहर हो चुकी
एक प्राचीन क़ब्र से
लकड़ी का एक प्याला मिला उसे
देर तक प्रयत्न करता रहा वह
देर तक जोड़ता रहा अक्षर
जो लिखे हुए थे
पर मिटे हुए थे
तीन हज़ार वर्ष पुरानी
उस क़ब्र से निकले प्याले पर
पढ़ ही डाली
आख़िर उसने वह इबारत
"समुद्र अनंत है
और अनंत है यह नभसागर
सूर्य अनंत है
और सुंदर यह धरती की गागर
जीवन अनंत है
आत्मा- हृदय का जलसाघर
और मृत्यु अनंत है
क़ब्र की ओढ़े काली चादर "
(1903)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय