निर्णय-निर्माण / उमा अर्पिता
आज तो--
अपने आस-पास बिखरी
धूप के
गुनगुने अहसास को/कुछ देर
जी लेने को/जी चाहता है
एक लम्बी/पहाड़-सी उम्र
कमरों में सिमट कर,
उजाले के अस्तित्व से कट कर
गुज़ार चुकी हूँ, किंतु आज
आकाश के विस्तार को
आँचल में भर लेने को
जी चाहता है
आज/किसी अनजान प्रेरणा के
वशीभूत हो
मेरे जोशीले होंठों ने/अकस्मात ही
समझ/बूझ के स्रोत बहा डाले हैं
बीते समय की/कई हास्यास्पद-सी घटनाएँ
अपनी व्यापक कार्य-परिधि में
कदम बढ़ाती/साथ-साथ
घिसटती आ रही हैं,
पर नहीं...!
अब/बदनसीबी का यह बुर्का
सहन नहीं होता!
बाहरी उजाले/शीतल रक्त को गरमाने में
सहायक हो रहे हैं...
इसलिए/आज तो
अँधेरे के विरुद्ध
साहस के साथ मिलकर
मुठभेड़ों/धावों/हल्लों का
जिक्र छेड़ने को जी चाहता है!
एक उम्र जी लिए
कमरों में सिमट कर
अब/उजाले में जीने को
जी चाहता है।