निर्दोषी है बहन तेरी, भाई मनै मारै मतन्या / प.रघुनाथ
निर्दोषी है बहन तेरी, भाई मने मारै मतना।
अपनी इज्जत अपने हाथों, आज उतारै मतना।। टेक।।
छोटी बहन सुता सम होती, मान वेद की मरियादा।
तुल्य पिता के बड़ा भाई हो, है दुनिया का कायदा।।
जो जीव जगत में आया है, तो जाणे का सी वायदा।
भय के वशीभूत हुआ तू, भाई है तेरा गलत इरादा।।
दोनों लोक बिगड़ जां, ऐसी चित में धारै कतना।। 1।।
दक्षिण से उत्तर को गंगा, कभी नहीं बह सकती।
भू मण्डल की धूल कभी, नहीं सूर को गह सकती।।
भाई के लिय बहन जगत की, सब आफत सह सकती।
तू जिस तरिया राखेगा मैं, जिन्दगी भर रह सकती।
सोच समझ कर करम, भरम में वृथा हारे मतना।। 2।।
फिर पाछे पछतायेगा, जो अब नहीं टैम विचारा।
है झूठा विश्वास तेरे, लगा नभ मण्डल में लारा।।
किस शत्रु ने घल में भरकै, छिपके शब्द पुकारा।
अब तक किसी भाणजे ने, ना अपना मामा मारा।।
निर्मल नीर श्री गंगा का, बहम में झारे मतना।। 3।।
बड़ी खुशी की बात कंस, तनै सारी जनता जीती।
इतना बड़ा वीर होके, क्यूं करन लगा अनरीती।।
पता नहीं आगे का, मानस जाणै पिछली बीती।
तू रघुनाथ देखले सुनके, मानसिंह की नीती।।
लाज तारके लालच में, भईया ललकारे मतना।। 4।।