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निर्दोष, निरीह लोकक कियै जान जा रहल छै / बाबा बैद्यनाथ झा
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निर्दोष, निरीह लोकक कियै जान जा रहल छै
देखू तँ अपन देशक सम्मान जा रहल छै
बढ़लै-ए अनय फेरसँ-रावण आ कुम्भकर्णक
निष्फल ओ वीर रामक सभ वाण जा रहल छै
अपनेमे सभ कटैए अपना लए सभ मरैए
बाजू कतऽ मनुजकेर संतान जा रहल छै
मायक शरीरकेँ ओ खंड-खंड काटि रहलै
सभ व्यर्थ महापुरुषक बलिदान जा रहल छै
तेहन बसात बहलै किछु स्वार्थकेर खातिर
मजहब आ जाति-इज्जति ईमान जा रहल छै
कन्याक वयस पनरह बरक उमेर पचपन
गौना कराक बुढ़बा शमशान जा रहल छै
जहियासँ आबि गेलैए मुक्त छन्द, नव कविता
तहिएसँ मंच परस मृदु-गान जा रहल छै