निर्धन बालक की विनती / भूपराम शर्मा भूप
हे भगवान टेर अब सुनिलेउ, कीजो तनिक अबरिया नायँ।
जानै कब सैं भटकि रहे हैं, सूझति कतहुँ डगरिया नायँ॥
क्षीर सिंधु मैं कबौ दूध की तुम तौ करो कदरिया नाँय।
हम इक बूँद मठा कौ तरसैं खूँटा बंधी बकरिया नायँ॥
तुम लछिमी पति हौ तुम कौ तो धन की कठिन गठरिया नायँ।
यहाँ फीस अरु कागद हूँ की हमसै होति गुजरिया नायँ॥
तुमकौ विस्नु लोक में व्यापै बरखा और बदरिया नायँ।
यहाँ फूस हू की परि पावति छत पै सहज छपरिया नायँ॥
कहत गुरु जी हरि-पितु-हित बिन मिलती गाँठि दमरिया नायँ।
कैसे पितु हौ जो निज बच्चनु की है तुम्हें खबरिया नायँ॥
तुम लड्डुन सैं भोग लगावौ हमरी तनिक खबरिया नायँ।
रोजु महाजन ताने मारै देतो कोउ उधरिया नायँ॥
बापू करैं मजूरी उनपै कोई खेत-टपरिया नायँ।
अम्मा काम करै साहुन घर तापै एक चदरिया नायँ॥
तुम रेशम के बस्तर पहिरे हम पैं फटी गुदरिया नायँ।
तुम मंदिर में ठाट करि रहे, अपनी सही बखरिया नायँ॥
तुम पै तो दस-दस बासन हैं अपने पै इक थरिया नायँ।
हमहू भूलि जाइंगे तुमकौ लेउगे अगर खबरिया नायँ॥