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निर्धारित नहीं / सुरेन्द्र रघुवंशी

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देखे गए सपनों से बिल्कुल मेल नहीं खाता यथार्थ
धन का गणितीय चिन्ह ऋण में बदलने से
जोड़ ही नहीं सारा सवाल ही ग़लत हो गया

गणित और विज्ञान भी तो नहीं है
ज़िन्दगी की मोटी क़िताब
कि सब कुछ गणनाओं, रासायनिक और जैविक क्रियाओं के अनुसार ही घटित हो

उपयंत्री का खींचा गया नक़्शा भी नहीं है जीवन
कि हुबहू रेखाओं पर बना दिया जाए भवन
और रेत सीमेण्ट कंक्रीट और लोहे का
अनुपात और मिश्रण हो निश्चित नपा-तुला

यहाँ अनिश्चय के भँवर में फँसने की सम्भावनाएँ
निरन्तर घेरे रहती हैं हमें
सुखद यह है कि समय के रण-क्षेत्र में
हमारे पास आत्मविश्वास का मज़बूत कवच और उत्साह की ढाल है

सब कुछ परिस्थितियों की हवायें तय करतीं हैं
कि कौनसा तिनका उड़कर कहाँ रखा होगा
उनके बहने की रफ़्तार और दिशा क्या होगी

पर हमें चलना है कर्म का डण्डा लेकर ही
काम और सहारे के लिए ही नहीं
अपनी ओर काटने के लिए भौंकते हुए चले आ रहे
विघ्नों के श्वानों को मारने और भागने के लिए भी ।