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निर्बल के बल हैं मनमोहन सबल न / स्वामी सनातनदेव

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ध्वनि लावनी, कहरवा 6.8.1974

निर्बल के बल है मनमोहन, सबल न उनको पाता है।
हो ज्ञान ध्यान का मान जिसे वह पुरुष न उनको भाता है॥1॥
जो सभी भाँति हो दीन-हीन, पर उनसे रखता नाता है।
यदि और कोई अवलम्ब न हो तो प्रीति-पदारथ पाता है॥2॥
प्रीतम की है प्राण प्रीति ही, प्रेमी उनको भाता है।
उसके प्रीति पन्थ के साधन प्रीतम स्वयं जुटाता है॥3॥
जो अपना सब कुछ प्यारे के पग-तल में भेट चढ़ाता है।
वह प्यारे की करुणा से फिर बस सब कुछ ही पा जाता है॥4॥
पर प्रियतमके सिवा न प्रेमीको वह कुछ भी भाता है।
तब अपने को ही देकर वह प्रेमी का ही हो जाता है॥5॥
प्रेमी भी निजता को तजकर बस यन्त्रमात्र रह जाता है।
तब प्रीतम ही निज लीलाहित उससे सब कृत्य कराता है॥6॥
जिसमें अपना कुछ भी न रहे प्रीतम को वह ही भाता है।
उस प्रेमी का प्रेमी होकर प्रीतम उससे रस पाता है॥7॥
फिर प्रेमी-प्रीतम भेद न रहकर प्रीतिमात्र रह जाता है।
है प्रीतिमात्र हो परमतत्त्व, उसमें यह सब सरसाता है॥8॥