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निर्भया का पुनर्जन्म / सुधा चौरसिया
Kavita Kosh से
बार-बार आते-जाते मौसमों की तरह
पैदा होने वाली अनेक निर्भया
भीड़ का मुद्दा बन
सड़कों की आवाज बनतीं
और फिर गुम हो जातीं
प्रशासन, व्यवस्थाएँ
और कानूनी कागजों से निकल दौड़ती
और फिर कागजों में बन्द हो जाती
निर्भया पैदा होती है, होती रहेगी
पुलिस दौड़ेगी, कानून गरजेगा
व्यवस्थाएँ बनेंगी, पुलिस सो जायेगी
कानून मौन होगा, व्यवस्थाएँ शांत
और निर्भया पैदा होती रहेंगी...