निर्मला गर्ग / परिचय
दरभंगा (बिहार) के एक मारवाड़ी परिवार में जन्म । मई या जून 1955 में । बी०एस०सी० प्रथम वर्ष की पढ़ाई दरभंगा से । उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से
वाणिज्य में स्नातक । रूसी भाषा में डिप्लोमा ।
लेखक संगठनों में सक्रियता । पहले प्रगतिशील लेखक संघ, फिर जनवादी लेखक संघ में लम्बे समय तक कार्य । सफ़दर हाशमी की निर्मम हत्या
के तुरंत बाद जन नाट्य मंच गाज़ियाबाद की स्थापना । लगभग 20-22 प्रदर्शन ।
कविताएँ सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित । कुछ कविताओं का बंगला, मराठी, अँग्रेज़ी और जर्मन में अनुवाद । कविताएँ 'यह समय है', 'दस बरस : हिंदी कविता अयोध्या के बाद' और 'कहती हैं औरतें' आदि संग्रहों में संकलित । गद्य लेखन थोड़ा, पर चर्चित ।
सन 1992 में पहला संग्रह 'यह हरा गलीचा' प्रकाशित । दूसरी किताब 'कबाड़ी का तराजू' सन 2000 में आई । इस किताब पर हिंदी अकादमी, दिल्ली का कृति पुरस्कार । तीसरा संग्रह 'सफ़र के लिए रसद' सन 2007 में प्रकाशित |
बकौल निर्मला जी कविता लिखना इनके लिए जुलूस में नारे लगाने, मज़दूरों की सभा में शामिल होने, पास-पड़ौस से बातचीत, पौधों में पानी देने, घर की साफ़-सफाई करने आदि अन्यान्य कामों की तरह ही एक काम है । यह अन्याय, शोषण, विषमता का प्रतिकार तो है ही; अपनी मुक्ति, अपना आत्म-विस्तार भी है ।