आओ रचना रचाएँ,
चारु चातुरी दिखाएँ,
ज्ञान, कर्म की भुजाएँ
वर्तमान को झुलाएँ
स्वर्ग भूमि को बनाएँ
सुख पाएँ दीन दुखिया।
आओ सपना जगाएँ
शूल-धूल से उठाएँ,
मोरपंख से सजाएँ
प्रेम-बाँसुरी बजाएँ,
नाच जाए मनबसिया।
आओ बगिया लगाएँ,
फूल-पंखुरी खिलाएँ,
पात-पात को बजाएँ
राग-रागिनी जिलाएँ
सूर्य-चंद्र मुस्कराएँ
रंग-मंच बने दुनिया।