निर्वात कि दल तक जहाँ नहीं हिलते हैं
पूजा के फूल वहीं चुपके खिलते हैं!
पाऊँ प्रवेश मैं कैसे, उस कानन में
किरनों के कोमल पाँव जहाँ छिलते हैं! S
निर्वात कि दल तक जहाँ नहीं हिलते हैं
पूजा के फूल वहीं चुपके खिलते हैं!
पाऊँ प्रवेश मैं कैसे, उस कानन में
किरनों के कोमल पाँव जहाँ छिलते हैं! S