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निर्वासन का घर / तेनजिन त्सुंदे
Kavita Kosh से
चू रही थी हमारी खपरैलों वाली छत
और चार दीवारें ढह जाने की धमकी दे रही थीं
लेकिन हमें बहुत जल्द लौट जाना था अपने घर.
हमने अपने घरों के बाहर
पपीते उगाए,
बगीचे में मिर्चें,
और बाड़ों के वास्ते चंगमा<ref>बेंत जैसा लचीले तने वाला एक पेड़</ref>,
तब गौशालों की फूँस ढँकी छत से लुढकते आए कद्दू --
नांदों से लडख़ड़ाते निकले बछड़े,
छत पर घास
फलियों में कल्ले फूटे
और बेलें दीवारों पर चढऩे लगीं,
खिड़की से होकर रेंगते आने लगे मनीप्लाण्ट,
ऐसा लगता है हमारे घरों की जड़ें उग आई हों ।
बाड़ें अब बदल चुकी हैं जंगल में
अब मैं कैसे बताऊँ अपने बच्चों को
कि कहाँ से आये थे हम ?
शब्दार्थ
<references/>