भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निर्वाह / बबली गुज्जर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम इतिहास के पहले ऐसे प्रेमी युगल नहीं थे
जिनकी इच्छाएँ बहा ले गई पवित्र अश्रु नदी,

सब विसर्जित कर जोड़ लिये थे ईश्वर आगे हाथ
और मुक्त कर दिया था एक दूसरे को हँसी- खुशी

हमने आजीवन अपने रिश्ते पर लगाए कयास
बिछड़ने के, मिलने से भी ज्यादा किए प्रयास

हमने प्रेम के नफे- नुकसान की सन्धि लिखी
विच्छेद उभारकर कहानी की हर दूसरी पंक्ति लिखी

हमारे प्रेम में गोपनीयता की वजह नहीं थी
हमारे प्रेम के लिए संसार में जगह नहीं थी

नदी में फेंके मन्न्नती सिक्के न खोज पाया गोताखोर
उन्हें अँधेर पानी की काई, तली की गहराई भा गई,

जिन चादरों को पीर मज़ारों पर चढ़ा कर आये थे
थामकर एक दूसरे का हाथ कभी,
वह हमारी प्रेम कहानी की कब्र पर कफ़न बन छा गई

मैं सिरे जोड़ने और गांगाँ बाँधने में, चूकती रही थी सदा
मेरा अपराध सिर्फ प्रेम था, जिसकी मिली फिर सज़ा

पहली बारिश में हरी हुई,
दूब घास की तरह पनपा हमारा प्यार
तूफान में खत्म हुई,
फसल की तरह बर्बाद हुआ

तुम्हारा साथ मेरी वह खोई हुई किताब है
जिसका शब्द- शब्द याद होते हुए भी
मैंने उसे खोजना नहीं छोड़ा

तुम्हारा इंतज़ार करते करते दुख गई हैं
मेरी आत्मा की पिण्डलियाँ
मेरी आँख में मर गए हैं कितने मौसम
मेरे जिस्म से कतरा- कतरा उड़ रही है खुशियाँ

ज़िन्दगी अब क्यों ही सितम ढाए
मन अब क्यों ही सन्ताप मनाए,

ये क्या कम पीड़ादायी नहीं था?
कि मैनें, ईश्वर की नाराजगी
और तुम्हारे अबोलेपन का
साथ- साथ निर्वाह किया!
-0-