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निर्विकल्प / भारत भूषण अग्रवाल

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इसने नारे की हवाई छोड़ी
उसने भाषण की चर्खी
तीसरे ने योजना की महताब
चौथे ने सेमिनार का अनार
पाँचवे ने बहस के पटाखों की लड़ी
छठे ने प्रदर्शन की फुलझड़ी
-छन भर उजाले से आँखें चौंधिया गईं
पर फिर
खेल ख़त्म होते ही
और भी अदबदा कर अँधेरे ने घेर लिया ।

भाइयो,
सहधर्मियो !
सुनो, तुम्हें मन की एक बात बतलाता हूँ :
सूरज का कोई सब्स्टीट्यूट नहीं है
यहाँ तक कि चाँद भी
जितना उजाला है
उतना वह सूरज है !

रचनाकाल : 20 नवंबर 1966