भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निलम्बित पल / उंगारेत्ती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: उंगारेत्ती  » संग्रह: मत्स्य-परी का गीत
»  निलम्बित पल

चलते-चलते आख़िरकार

पा लिया है मैंने फिर

प्यार का कुँआ

एक हज़ार एक रात की आँख में

सोया हूँ मैं

उजड़े हुए बग़ीचों में

आई है वह पंडुकी की तरह

विश्राम के लिए

दुपहरी की मूर्च्छीली हवा में

बीनी हैं मै ने

नारंगियाँ और चमेली

उसकी ख़ातिर ।