निवेदन / मोहन अम्बर
गीत भले कल मत जगना तुम, आज अधर की बात मान लो।
आज बह गये नादानी में,
कौन कहाँ कितने पानी में,
यह अनुमान लगाना मुश्किल,
प्राण बहुत है हैरानी में,
इसके लिये निवेदन तुमसे,
नाव! भले कल मत बहना तुम, आज लहर की बात मान लो।
आज हवाएँ ग़लत चल गई,
खिलने वाला बाग़ छल गई,
पतझर खुशियाँ मना रहा है,
बिना जलाये आग जल गई,
इसके लिये निवेदन तुमसे,
गंध! भले कल मत हँसना तुम, आज भ्रमर की बात मान लो।
मुझको जान पथिक अनजाना,
समय चाहता है भटकाना,
लेकिन मंज़िल भेज रही है,
लिख-लिखकर मुझ तक परवाना,
इसके लिये निवेदन तुमसे,
पाँव! भले कल मत चलना तुम, आज डगर की बात मान लो।
सत्य सर्जन है स्नेह जिन्दगी,
जिनकी दुश्मन हृदय गंदगी,
लेकिन उससे जीत गया जो,
उसको सौ-सौ मिली बन्दगी,
इसके लिये निवेदन तुमसे,
मित्र! भले कल मत मिलना तुम, आज सफ़र की बात मान लो।