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निवेदन / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी

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विश्व की सर्वोत्कृष्ट साहित्य में महाकवि कालिदास विरचित ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्‘ एक परम अद्वितीय कृति है। हिन्दी साहित्य का प्रेमी मानस इस नाट्य काव्य का यदि रसपान नहीं किया है तो मेरा मानना है कि वह हिंदी साहित्य के शिखर साहित्यों के अमृतवर्षा से पूर्णतः वंचित है। ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्‘ की बहुश्रुत महिमा गाथा मुझे इसे पढ़ने के लिए उर में सदैव लालसा भरती रहती थी। यह मेरे लिए एक सुखद संयोग ही था कि मेरी साहित्यिक अभिरुचि से अवगत होकर मेरे एक मित्र ने मुझे यह पुस्तक भेंट की। मैंने इसका अध्ययन किया। किन्तु अध्ययन मात्र से ही मुझे आत्मिक शान्ति नहीं प्राप्त हुई। बार बार मन करता था कि इसका काव्यानुवाद करने का प्रयास करूँ। मैं इसके पहले कविताएं भी अधिक नहीं लिखा था, किन्तु जितनी काव्य रचना किया था वे सभी गीत के रूप में थी। उर में काव्यानुवाद करने की लालसा अतीव बलवती थी, सो अनुवाद छन्दबद्ध अनुवाद कार्य आरम्भ कर दिया। मैं इसके अनुवाद कार्य, वह भी छन्दबद्ध, की गुरुता, दायित्वबोध और गरिमा के बोझ को भलीभॉंति आभास कर रहा था। मैंने यह निर्णय कर लिया था कि यदि इस अनुवाद कार्य की उत्कृष्टता से मुझे स्वयं को संतुष्टि नहीं प्राप्त हुई तो इसे सार्वजनिक नहीं करूँगा। सर्ग प्रति सर्ग अनुवाद करता रहा। निश्चय ही उत्तरोत्तर सर्ग पिछले सर्गों के काव्यानुवाद से अधिक निखरते जा रहे थे। यह नितान्त मेरा आकलन था। इस कार्य में मैं किसी का मार्गदर्शन भी नहीं पा रहा था। यह काव्यानुवाद पूर्ण होने पर मुझे प्रथम सर्ग का काव्यानुवाद कमतर लगा, इसलिए प्रथम सर्ग का फिर से अनुवाद किया।

दिसम्बर, 1999 में यह काव्यानुवाद कार्य सम्पन्न हो गया और यह जैसा कर सका वह आपके समक्ष है। हॉं, मैं ‘शकुन्तला परिणय’ के नाम से इस काव्यानुवाद कार्य में पदों की रचना करते समय दूसरे गद्यात्मक अनुवाद की सहायता अवश्य ले रहा था। क्योंकि मैं स्वयं को ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्‘ का संस्कृत भाष समझने में असमर्थ था। मेरे अतीव सम्मानित महाकवि कालिदास और अपने पाठकों से मेरे इस प्रयास में हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।