निवेस / राजू सारसर ‘राज’

म्हूं करूं,
म्हारै आज रो
निवस
सोनळियो सुखद
सुपना सजावण सारू
देस रै भविस में
आंवतै काल सारू।
देस रो लाभ
म्हारो लाभ
जण-गण मंगळ
री सूचिता लियां
समता-समानता
लोकतंतर री रिच्छा
सैहरद्या, सैहवीर्यता
दयालुता रा भाव लियां।
सू-संसकीरती रो
पोसण करतौड़ी
बै’वै
विकास री धारा।
नवै-पुराणै में
नीं होवै पैदा
विभेद री खायां।
भूख-गरीबी नैं दुत्कारै
दूबळै नै अभैदान दैवे
बुढापै रो सरो बणैं
नीं सोसक होवै
हिवडै उमड़ती संवेदणां
मै’सूस करै
निबळै री बाणी बणैं
निरपेखता लियां
राजनीति रा सिखर बणैं
फगत इतरी’क
अभिलाखा लियां
म्हूं करू
आज रो निवेस
काल में।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.