भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निवेस / राजू सारसर ‘राज’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हूं करूं,
म्हारै आज रो
निवस
सोनळियो सुखद
सुपना सजावण सारू
देस रै भविस में
आंवतै काल सारू।
देस रो लाभ
म्हारो लाभ
जण-गण मंगळ
री सूचिता लियां
समता-समानता
लोकतंतर री रिच्छा
सैहरद्या, सैहवीर्यता
दयालुता रा भाव लियां।
सू-संसकीरती रो
पोसण करतौड़ी
बै’वै
विकास री धारा।
नवै-पुराणै में
नीं होवै पैदा
विभेद री खायां।
भूख-गरीबी नैं दुत्कारै
दूबळै नै अभैदान दैवे
बुढापै रो सरो बणैं
नीं सोसक होवै
हिवडै उमड़ती संवेदणां
मै’सूस करै
निबळै री बाणी बणैं
निरपेखता लियां
राजनीति रा सिखर बणैं
फगत इतरी’क
अभिलाखा लियां
म्हूं करू
आज रो निवेस
काल में।