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निशानियाँ / पंकज सिंह

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पतझड़ के पत्तों से उठेगा सलेटी काला धुआँ
धीमे-धीमे फिर सुलगेगी आग

दिखेंगी अन्धेरे को चीरती रक्ताभ सुनहरी लपटें
दिखीं नहीं जो अरसे से, हमारे होने की निशानियाँ ।