Last modified on 27 दिसम्बर 2015, at 17:11

निशानियाँ / पंकज सिंह

पतझड़ के पत्तों से उठेगा सलेटी काला धुआँ
धीमे-धीमे फिर सुलगेगी आग

दिखेंगी अन्धेरे को चीरती रक्ताभ सुनहरी लपटें
दिखीं नहीं जो अरसे से, हमारे होने की निशानियाँ ।