पतझड़ के पत्तों से उठेगा सलेटी काला धुआँ
धीमे-धीमे फिर सुलगेगी आग
दिखेंगी अन्धेरे को चीरती रक्ताभ सुनहरी लपटें
दिखीं नहीं जो अरसे से, हमारे होने की निशानियाँ ।
पतझड़ के पत्तों से उठेगा सलेटी काला धुआँ
धीमे-धीमे फिर सुलगेगी आग
दिखेंगी अन्धेरे को चीरती रक्ताभ सुनहरी लपटें
दिखीं नहीं जो अरसे से, हमारे होने की निशानियाँ ।