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निशानी / ऋषभ देव शर्मा

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देखो !
इतिहास में जुड़ गया
एक वर्ष और|
सब कुछ बदल गया
पर
मेरे माथे पर
बचपन की चोट के
तीनों निशान
वहीं के वहीं हैं !
मेरे देवता,
सृष्टि के प्रारंभ में
जब तुमने
मुझ पर
पद प्रहार किया था
तब
क्या तुम्हें मालूम था
की ये निशान
न मिटेंगे
प्रलय के मेटे भी !