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निशानी / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
पृथ्वी ने अपने गर्भ की तरफ ऊँगली की
स्त्री के अपने
हाथ में सने गीले पलोथन
और पांवों में फटी बवाइयां की ओर इशारा किया
हरियाले पेड़ ने अपनी उदासी दर्शाते हुए अपना पीला पत्ता झाड़ा
थके-मांदे सूरज ने
पसीने से भरा अपना अंगोछा चाँद के कंधे रखा
तब उसके श्रम ने आकार लिया
चीज़ें जब तक अपनी निशानदेही न दिखलाये
उन्हें समझे कौन