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निशान लगाता गया हूँ मैं / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे

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निशान लगाता गया हूँ मैं तुम्हारी देह के एटलस पर
आग की सलीबों से
यहाँ से वहाँ गया मेरा मुँह : छिपने की कोशिश करती एक मकड़ी
तुम में, तुम्हारे पीछे, निरीह, प्यास से व्याकुल
सांझ के तट पर तुम्हें सुनाने को कहानियाँ
ओ उदास, विनम्र गुड़िया ! ताकि तुम उदास न होओ
एक हंस, एक पेड़, कोई एक चीज़ — सुदूर और प्रसन्न
अंगूरों का मौसम, पका हुआ फलदार मौसम ।
मैं, जो रहा किया एक बन्दरगाह में, जहाँ मैंने तुम्हें प्यार किया ।

एकाकीपन सपनों और ख़ामोशी में गुज़रा ।
समुन्दर और उदासी के दरम्यान थमा हुआ
ध्वनिहीन, नीमबेहोश, दो गतिमान नाविकों के साथ ।
होंठों और आवाज़ के बीच कोई चीज़ मरती जाती है
कोई चीज़, जिसके पास चिड़ियों के पंख हैं ।

जो यातना और एकान्त की है
जिस तरह पानी को थामा नहीं जा सकता जाल में,
मेरी गुड़िया ! बस, कुछ ही काँपती बून्दें बच रही हैं.
तो भी कोई चीज़ गाती है इन शरणार्थी शब्दों में,

कोई चीज़ गाती है, कोई चीज़ मेरे क्षुधातुर मुँह तक चढ़ती जाती है ।
ओह ! आनन्द के शब्दों में तुम्हारा उत्सव मना पाना ।
गाओ, जलो, उड़ जाओ, किन्हीं पागल हाथों में अकेली मीनार की तरह ।

मेरी उदास कोमलता, अचानक क्या हो जाता है तुम्हें ?
जब मैं पहुँच चुका हूँ — सबसे ख़ौफ़नाक, सबसे ठण्डी चोटी पर
मेरा दिल बन्द हो जाता है, रात के फूल की मानिन्द ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे