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निष्कर्ष / जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी — वीरान मरघट-सी,
ज़िन्दगी — अभिशप्त बोझिल और एकाकी महावट-सी !
ज़िन्दगी — मनहूसियत का दूसरा है नाम,
ज़िन्दगी — जन्मान्तरों के अशुभ पापों का दुखद परिणाम !
ज़िन्दगी — दोपहर की चिलचिलाती धूप का अहसास,
ज़िन्दगी — कंठ-चुभती सूचियों का बोध तीखी प्यास !
ज़िन्दगी — ठहराव, साधन-हीन, रिसता घाव
ज़िन्दगी — अनचहा संन्यास, मात्र तनाव !