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निष्कर्ष / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी में प्यार से सुन्दर
कहीं
कुभी भी नहीं !
कुछ भी नहीं !
जन्म यदि वरदान है तो
इसलिए ही, इसलिए !
मोह से मोहक सुगंधित
प्राण हैं तो इसलिए !
ज़िन्दगी में प्यार से सुखकर
कहीं
कुछ भी नहीं !
कुछ भी नहीं !
प्यार है तो ज़िन्दगी महका
हुआ इक फूल है !
अन्यथा; हर क्षण, हृदय में
तीव्र चुभता शूल है !
ज़िन्दगी में प्यार से दुष्कर
कहीं
कुछ भी नहीं !
कुछ भी नहीं !