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निष्ठाएं / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
निष्ठायें स्थिर वस्तु नहीं होतीं
वे समय और सुविधा के साथ
बदलती रहती हैं
बाज निष्ठायें इतनी छिनाल होती हैं कि
वे अपने जन्मदाता को बदलकर
दूसरे धर्मपिता की खोजकर लेती हैं
निष्ठायें अंधी नहीं होतीं
उन्हें साफ-साफ दिखायी देता है
वे जानती हैं, उन्हें बायें चलना है या दायें
वे दिन गये जब पतिव्रता होती थीं निष्ठायें
यह अदलाबदली का जमाना है जहां
नैतिकता के नियम लागू नहीं होते
उनके लिए कई पुरुष दिल खोलकर
बैठे हैं
उनके पास किसी के गोद में बैठने का
विकल्प खुला है
यह लिव-इन रिलेशनशिप का जमाना है
जब तक मन किया रहे फिर पीठ फेर कर
चल दिये
ग्लोबल हो चुकी हैं निष्ठायें
उन्हें कहीं भी जाने के लिए पासपोर्ट
अथवा चरित्र प्रमाणपत्र की जरूरत
नहीं है