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निस्संग / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
ठंडी रात,
सन्नाटा !
जब-तब कहीं कोई
- थरथरा उठता पेड़,
- थरथरा उठता पेड़,
रह-रह
सनसना उठती
- हवा ।
- हवा ।
अथवा
चीख पड़ता
दर्द में
- चकवा।
- चकवा।
न कोई बात ।
गहरी
बहुत गहरी
एक ख़ामोशी,
अपूर अटूट बेहोशी
शिथिल
- आविद्ध।
- आविद्ध।
कुंठित मन
सिहरता तन
- विकल
- विकल
दयनीय पक्षाघात।
- सन्नाटा !
- सन्नाटा !
न कोई बात,
ठंडी रात !