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नींद-नींद में ही / केशव
Kavita Kosh से
पहले पहर सुला दिया
माँ ने
लोरियाँ गाकर
बिल्ली से डराकर
राम, गांधी के किस्से सुनाकर
दूसरे पहर सुला दिया
प्रेमिका ने
खिड़कियों, दरवाजों के पर्दे गिराकर
पीली पत्तियों-से होंठ छुआकर
फिल्मी डायलाग दोहराकर
तीसरे पहर सुला दिया
पत्नी ने
पहली तारीख को चेहरे की झुर्रियां छिपाकर
आपरेशन टेबल की तरह देह बिछाकर
गरीबी की सूली ढोने वाला मसीहा बनाकर
अंतिम पहर में
खुद को सुला दिया खुद ही
क्योंकि
धूप बदल चुकी थी
सूखे चमड़े में
जिजीविषा हो चुकी थी औंधा बर्तन
और कंधों पर आ बैठा था एक कौवा.