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नींद-१० : नींद की चौड़ी नदी / सुरेन्द्र स्निग्ध
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काली पतीली को
रगड़-रगड़ कर
साफ़ कर रहा
सात-आठ साल का नौकर
छोटू
नींद में है यह
प्यारा-सा, काली रात की तरह काला-सा बच्चा
जगे हुए हैं उसके
सिर्फ नन्हें-नन्हें हाथ
वह पतीली को
साफ़ कर रहा है
रगड़-रगड़ कर
या अपन कमज़ोर डैनों के सहारे
तैर रहा है
नींद की चौड़ी नदी
पूरी दुनिया के
बच्चे जब सो
रहे हैं
बुन रहे हैं
सपनों के जाल
यह छोटू
छिन्न-भिन्न कर
रहा है
सपनों के जाल
डूब उतर रहा है
नींद की नदी में
थोड़ी ही देर में
उग आएगा सूरज
और सुबह की धुन्धली
चादर में
दुबक जाएगा
यह बच्चा
न नींद उसकी है
न सूरज उसका
दिन को रात
और
रात को दिन कर रहा है
बच्चा