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नींद-७ : नींद हो गई है भारी / सुरेन्द्र स्निग्ध
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आज सारी रात
बरसती रही
भीगती रही
चलती हुई बस
भीगती रही
मेरी नींद
भीगकर
नींद
हो गई भारी
रूई के गट्ठर की तरह
मेरी गर्दन
झुक रही है भार
से
मेरी गर्दन
भीग रही है
बरसती रात से
एक क्षण के लिए
हो जाना चाहता हूँ
हल्का
रूई के फाहों की
तरह
गर्दन करना चाहता हूँ सीधी ।