हजारीबाग के
सुनसान बस स्टैण्ड पर
मेरे साथ
जगी हुई है मेरी कविता
बैठी है सटकर पास
पटने की भाग-दौड़ में
रूठी रही पिछले एक वर्ष से
छिटकती रही हमेशा
फुदकती रही सिर्फ़ सपनों में
जब इसे मैंने
छूना चाहा
जब-जब इसे
चूमना चाहा
जब-जब इसे भरना चाहा
बाँहों में
रूठी रही
मेरी कविता
मेरी नई
प्रेमिका की तरह
पाकर एकान्त
पाकर कुछ अपने क्षण
मेरी कविता
लिपटी हुई है मुझसे
समाई है मेरी बाँहों
में
कविता को
और प्रेमिका को
चाहिए एकान्त
चाहिए अपना ही क्षण