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नींद जब टूटी / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बोर्ड पर घिसते रहे हम चाक
हमने नहीं जाना
मौत को नज़दीक ला देगा
तुम्हारा दवाख़ाना
ये दवाएँ—
गा रही जिनके हज़ारों गुण हवाएँ
ढाँप लेंगी घने कुहरे में
हमारी सब दिशाएँ
उन हवाओं का तराना नहीं जाना
बोर्ड पर घिसते रहे हम चाक
हमने नहीं जाना
नींद जब टूटी हुआ महसूस
रात लम्बी और लम्बी हो गई है
सुबह की जो किरण लाए थे
पहाड़ों से उठाकर
वह कँटीले जंगलों में खो गई है
एक कृत्रिम रोशनी की
मार खाएगा ज़माना नहीं जाना
बोर्ड पर घिसते रहे हम चाक
हमने नहीं जाना