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नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता: एक / शरद कोकास
Kavita Kosh से
मुझे नींद नहीं आ रही है
आ रहे हैं विचार
ऊलजलूल
कितना मिलता है यह शब्द
उल्लुओं के नाम से
क्या उल्लू दिन को सोता है
उसे नौकरी नहीं करनी पड़ती होगी
मेरी तरह शायद
उल्लू तो ख़ैर
उल्लू ही होता है
उल्लू का नौकरी से क्या
लेकिन क्या उल्लू प्रेम भी करता है
क्या पता
शायद नहीं
उल्लू तो आखिर
उल्लू ही होता है ना
लेकिन फिर क्यों
वह जागता है रात भर
मैं भी कितना उल्लू हूँ
उल्लू और आदमी के बीच
खोज रहा हूँ
एक मूलभूत अंतर।