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नींद बावरी / सुधेश
Kavita Kosh से
नींद बावरी क्यों आ जाती ।
जब आती सपने ले आती
जब जाती यादें रह जाती
दुनिया ने जो घाव दिये हैं
कोमल हाथों से सहलाती ।
निदिया सपने दोनों संगी
जिन को नहीं समय की तंगी
विधवा जो भी हुई कामना
सपने में वह रास रचाती ।
दिन में तो संग़़ाम छिड़ा है
कुछ बाहर कुछ मन में लड़ा है
नींद आवरण पीछे कोई
भोली सी सूरत मुस्काती ।
जीवन में जो नहीं मिला है
सपने में बन फूल खिला है
नीली आँखों वाली लड़की
रक्तिम गालों पर इतराती ।
नींद बावरी क्यों आ जाती