भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींद भर सोने दो / आरती मिश्रा
Kavita Kosh से
न जाने कितने जन्मों से उनींदी हैं
उसकी बोझिल आँखें
घूरती दीवार
उसमें सुराख बना देंगी
कुछ भी यथावत नहीं बचेगा
आग लगा देंगी
ख़्वाबों में
खिलखिलाहट में
पानी में भी
सावधान !
उसे नींद भर सोने दो