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नींद भी देता है सपने भी दिखा देता है / जहीर कुरैशी
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नींद भी देता है, सपने भी दिखा देता है
मैं अगर जागना चाहूँ तो सज़ा देता है
ये ज़रूरी नहीं वो ठीक पता हो लेकिन
जिसने पूछा है पता, उसको पता देता है
उसको बातों से समझ पाना बहुत मुश्किल है
शाप देता है तो लगता है दुआ देता है
प्रश्न सुनता तो है उत्तर नहीं देता लेकिन
बात ही बात में प्रश्नों को उड़ा देता है
सिर उठाते हुए पौधे को कुचल देता है
आत्म-सम्मान को मिट्टी में मिला देता है
मुल्क के रोग को समझा ही नहीं नीम हकीम
रोग 'क्षय' का हो तो 'छाजन' की दवा देता है
उसके भाषण को समझता है वो या उसका ख़ुदा
तीसरा कोई नहीं जानता क्या देता है